1993 में जुलाई के पहले हफ्ते में टीवी पर स्टेफी ग्राफ को विंबलडन का खिताब जीतते देख इमरान मिर्जा ने अपनी 6 साल की बेटी की पीठ थपथपाते हुए ये कहा कि कितना मजा आएगा अगर सानिया भी पेशवर टेनिस खिलाड़ी बनें और विंबलडन में खेलें। बस यही से सानिया के ‘सानिया’ बनने की कहानी शुरू होती है। महज 16 साल की उम्र में विंबलडन जूनियर युगल खिताब जीतने वाली इस हैदराबादी बाला का आज जन्मदिन है.
15 नवंबर 1986 को मुंबई में जन्मीं सानिया का इस साल ये 34वां जन्मदिन है. सानिया की पूरी जिंदगी की कहानी असल होने की बजाए काल्पनिक ही लगती है। अगर सानिया को समझना हो तो उनकी आत्म-कथा ace against odds (एस अगेन्स्ट ऑड्स) को जरूर पढ़ना चाहिए। कोर्ट के भीतर और बाहर अपने संघर्षों को सानिया ने जिस बेबाकी से बयान किया है, उसकी मिसाल भारतीय खेलों में बहुत कम है.
29 साल की उम्र में छह ग्रैंडस्लैम खिताब (तीन महिला युगल, तीन मिश्रित युगल) जीत चुकीं सानिया ने पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक से निकाह किया। 2018 में इजहान का जन्म हुआ। मां बनने के बाद इस खिलाड़ी ने तीन साल बाद इंटरनेशनल टेनिस में दोबारा वापसी की और फिर यूक्रेन की नादिया किचेनोक के साथ होबार्ट इंटरनेशनल महिला युगल का खिताब जीता.
अपने करियर के स्वर्णिम दौर में सानिया का बोलबाला था। वह न केवल उम्दा खेल बल्कि अपने व्यक्तित्व के चलते भी स्टार थीं। स्टार क्रिकेटर्स की तरह सानिया के भी अपने जलवे थे जो बेहद आसानी से इंटरव्यू के लिए तैयार नहीं होती थीं। मिर्जा जानती थीं कि पता था कि भारत में क्रिकेटर्स के दबदबे के बीच अपनी पहचान बनाने के लिए काफी कुछ करना पड़ेगा और उन्होंने बखूबी इसे किया.
सानिया अपनी आत्मकथा में लिखतीं हैं, ‘विंबलडन में मेरी टीशर्ट पर चर्चा हुई तो अमेरिकी ओपन में नथ पर… मैं जो कुछ भी पहनती, उसे बगावत का प्रतीक मान लिया जाता…शायद विदेशी मीडिया ने एक युवा भारतीय लड़की को पहले इस मुकाम पर नहीं देखा था या मैं एक पारंपरिक भारतीय लड़की के अमे रिकियों के मानदंड पर खरी नहीं उतरती थी..
दरअसल, एक वक्त ऐसा भी रहा कि सानिया फैशन आइकॉन भी बनीं। सानिया की नथ (नोज रिंग) जल्द ही भारत में काफी लोकप्रिय हुई और बाजार में सानिया नोज रिंग के नाम से बिकने लगी…युवा लड़कियों में इसका काफी क्रेज था। सानिया मिर्जा ने अपने करियर के दौरान कई विवा दास्पद मुद्दों पर बड़े स्टैंड लिए। आप उनसे सहमत हों या असहमत, लेकिन एक खिलाड़ी होने के बावजूद साफ-साफ एक स्टैंड लेना भारत में बहादुरी से कम नहीं हैं.
2005 में जब प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन ने सानिया को एशिया की एक हीरो में से एक बताया तो ये साफ हो गया था कि इस लड़की ने अकेले अपने बूते महिला टेनिस की पूरी तस्वीर बदल डाली। सोशल मीडिया पर जब भी लोग भारत-पाक क्रिकेट मैचों के दौरान उन्हें खींचने की कोशिश करतें तो वो अपने ही निराले अंदाज में उनका जवाब देती। पाकिस्तानी मीडिया भी उन्हें भारत की बेटी होने के चलते ठीक-ठाक परेशान करता। अगर सानिया टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करतीं हैं तो उनसे देश को काफी उम्मीद होगी.